Thursday, February 11, 2010

आज फिर एक गुस्ताखी की है...

आज मैंने एक हिमाकत की है,
हाँ! मैंने कुछ ज़ुर्रत की है,
लिए हज़ार सपने निगाहों में,
आज एक गुस्ताखी की है...


ज़मीन आसमान को मिलते देखा है,
गम और ख़ुशी का हसीन मिलन देखा है,
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की है,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


रूठे दोस्तों को मनाया है,
उदास चेहरों को हसाया है,
मैंने अपने गमों को भुलाकर,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


हर गीत को साज़ बनाया है,
हर वादे को निभाया है,
धडकनों में किसी को बसाकर,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


पुरानी यादों के धुंधले झरोखे से,
एक तस्वीर बनाने की कोशिश की है,
हर बात को याद करके,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


रात को उजाला बनाया है,
सहर को अँधेरा बनाया है,
प्रकृति के कुछ नियम तोड़कर,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


पानी से आग लगाई है,
आग से प्यास बुझाई है,
पानी और आग की इस कश्मकश में,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...


पत्तियों की सरसराहट,
झरनों से बहते पानी की आहट,
इस सरसराहट से आहट तक जाकर,
आज फिर एक गुस्ताखी की है...