Wednesday, February 16, 2022

च से चाय कड़क, चाय से चर्चा बेधड़क

दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं, एक वें जो चाय पीते हैं और दूजे वें जो चाय नहीं पीते, हम उनमें से हैं जिन्हें चाय से इश्क़ तो है पर चाय पीने का शौख कुछ ख़ास नहीं। 

बात जब चाय की छिड़ी है तो चलिए थोड़ी चर्चा कर लेते हैं। 

किताबों की दुनिया बेहद ही ख़ूबसूरत और आकर्षक होती है और कुछ लेखक ऐसे होते हैं जो किताब के पन्नों पे ज़िन्दगी के उतार चढ़ाव को बेहद ही खूबसूरती से उतारते हैं।  इनमे से एक लेखक हैं मुंशी प्रेमचंद।  जी हाँ, आज ग़बन से मुलाक़ात  हुई और कुछ ही वक़्त में सादग़ी से भी परिचय हो गया। 

अब देखने वाली बात है कि ये सादगी ज़िन्दगी के किन किन अनुभवों से मिलवाती है। 


- गुंजन 

Sunday, May 10, 2020

Lockdown!!

Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..
Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..

घर में अब हुए है बंद हम
फ़िज़ूल के खर्चे हुए हैं कम 
Office का stress ना होता कम
घर में कम होते नहीं बर्तन

Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..

Kids पकड़े बोरियत का छाता हैं
Schools अब कोई ना जाता है
कब तक रहें घर में हम यूंही
इसका ना जुगाड ना है जतन कोई..

Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..

रोज़ाना की अब तो दास्तान यही
Laptop and kitchen से दोस्ती हुई
किस्से कहुं किसकी सुनूं मैं?
वक़्त ने दी कैसी ठोकर हमें..

Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..

ट्रैफिक का शोर हुआ ख़तम
सबकी मंजिलें हुई हैं कम
घर भी ऑफिस भी अब यही
travelling kitchen balcony तक ही रही..

Lockdown का असर बसर है
कहो जी क्या खबर है..





Tuesday, April 7, 2020

बारिश... !!!

उफ्फ ही है बारिश आज तो, कभी गिरती सी कभी संभलती सी, कभी गरजती सी कभी बरजती सी.. कभी भिगाए आसमान को तो कभी इन सुनसान सड़कों को भी.. नज़ारा आज ऐसा भी होगा जब भिगाएगी बारिश अपनी बूंदों को भी.. कुछ इस कदर चांद भी साथ देगा की शर्मा जाएंगी एक एक छींट भी.. छुप के देखना ताकेंगी ज़रूर कभी पत्तों में छुपके तो कभी मुंडेर पे लटक के.. यूं मुस्कुराएगा चांद भी जैसे उसकी चकोर हो.. यूं ही मुस्कुराइए आप भी जैसा आपका हमसफ़र हो.. !! 


- गुन्जन

Monday, January 20, 2020

'Guest House': Rumi

This being human is a guest house
Every morning a new arrival.

A joy, a depression, a meanness,
some momentary awareness comes
as an unexpected visitor.

Welcome and entertain them all!
Even if they are a crowd of sorrows,
who violently sweep your house
empty of it's furniture,

still, treat each guest honourably.
He may be clearing you out
for some new delight.

The dark thought, the shame, the malice,
meet them at the door laughing,
and invite them in.

Be grateful for whoever comes,
because each has been sent
as a guide from beyond.

'My Monsters': Meng

My monsters come in different shapes and sizes.
Over the years, I have learned to deal with them.
I do that by letting go.

First, I let go of my wish to suppress them.
When they arrive, I acknowledge them.
I let them be.

Next, I let go of my instinct to vilify them.
I seek to understand them.
I see them for who they are.
They are merely creations of my body and mind.
I humour them a little.
I joke with them.
I joke about them.
I let them play.

Then, I let go of my desire to feed them.
They may play here all they want.
But they get no food from me.
They are free to stay here hungry, if they want.
I continue to let them be.
Then they get really hungry.
And sometimes they leave.

Finally, I let go of my desire to hold on to them.
They are free to leave as they wish.
I let them go.
I am free.
For now.

I do not overcome them.
They do not overcome me.
And we live together.
In harmony.

Saturday, June 8, 2019

मुझसे तू जुदा नहीं होता

मुझसे तू जुदा नहीं होता
क्यूं तू पराया नहीं होता
तेरे पास ही रह जाता है मेरा सब
बस इक तू मेरे साथ नहीं होता
मिलोगे तो पूछेंगे तुमसे
क्यूं हमारा आज
तेरे आज में नहीं होता
वक़्त तो है मेरे पास
बस उसमें तू बेहिसाब नहीं होता
गुज़रे लम्हों की बारिश में
धूप - सा एक वो किस्सा
आज क्यूं सतरंगी बनकर
हमें फिर से नहीं जोड़ता
और कभी कभी..
चुप्पी सी बैठी एक नाव में
इस किनारे से उस किनारे तक
हवा का वो एक झोंका मानो
तुम्हारी सारी बात मुझसे है केह देता
मुझसे तू जुदा नहीं होता
इसलिए तू पराया भी नहीं होता..

- गुन्जन

Saturday, June 1, 2019

खयाल...

ख़यालो का पिटारा
अक्सर मशगूल रहता है
अनगिनत एहसासों से
जो जुड़े होते हैं हमारी
खुशियों से गम से
चिंताओं से 
तो कभी इरादों से

छोटे से बच्चे से हैं ये खयाल
जब तक सोते नहीं
तब तक रुकते नहीं
लाख चुप करालो
शांत होते ये नहीं

कभी नरम तो कभी सख्त होते हैं
दिल की उधेड़बुन में ये खयाल 
बिजली के तारों सा उलझे
तो कभी रेत सा सुलझे होते हैं

रोज़ाना मिलने आते हैं
मुझे मुझसे हर बार मिलाते हैं
कभी कभी परेशान करते हैं
पर ये खयाल मेरा खयाल रखते हैं

- गुन्जन

Sunday, May 26, 2019

और फिर बारिश...

जब भी आती है
दिल में बस जाती है
क्या ये बारिश
आपको भी भाती है?

छलकती सी बूंदें
जाने कितने ही लम्हे छेड़े
क्या बीते लम्हों की झलकियां
आपको भी भाती हैं?

हल्के ठंडे से झोंके
गुजरते हैं रूह से होके
क्या वो भीनी सी मुस्कान
आपको भी भाती है?

भिगोती सर्द बूंदें तन को
रोंगटे से खड़े हो जाएं
मीठी सी गु द गुदाती ठंडक
आपको भी भाती है?

गीली जगमगाती सड़कें
चांद की चांदनी में
सुंदर सी शांत सी वो सैर
आपको भी भाती है?

जब भी आती है
दिल में बस जाती है
क्या ये बारिश
आपको भी भाती है?

- गुन्जन

Saturday, May 11, 2019

तेरी यारी..

मशरूफ सी ज़िन्दगी में,
फ़ुरसत है तेरी यारी
भागती सी सड़कों पे,
चुप सा मोड़ है तेरी यारी
उदासी के आलम में,
हसी है तेरी यारी
थके-हारे से दिन में,
मनचाहा आराम है तेरी यारी
बेचैनी के दलदल में,
सुकून है तेरी यारी
मेहंगाई के इस दौर में,
बेशुमार है तेरी यारी
इस झुलसती धूप में,
बारिश है तेरी यारी
गुड्डे गुड़िया का खेल सी,
बचपन है तेरी यारी
लकीरों में जिसको ढूंढूं,
वो साथ है तेरी यारी
फरेबी सी आशिकी में,
ईमान है तेरी यारी
गिले शिकवे में भी संभालती सी,
तसल्ली है तेरी यारी
दूर है आशियां मगर,
करीब है तेरी यारी
तनहा सी शाम में,
चाय बिस्किट है तेरी यारी
फासलों की जंजीरों में,
मुलाकातें है तेरी यारी
हताशाओं की महफ़िल में,
मेरा गुरूर है तेरी यारी
ख़ुदा भी मुझसे ये कहे,
बेमिसाल है तेरी यारी
हार जाऊं मैं जिसपे,
वो जीत है तेरी यारी...

- गुन्जन



Monday, April 22, 2019

काश.. के बाद की दुनिया

जब आप अपने ख़यालो की रेलगाड़ी में सफर करते हैं तो आपकी इस यात्रा में एक स्टेशन काश.. के बाद की दुनिया से होकर भी गुज़रता है क्या? मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है जब काश.. के बाद की दुनिया रास्ते में ज़रूर पड़ती है और तब मुलाक़ात होती है कितनी ही ख़्वाहिशों से।

वो ख़्वाहिशें, जो वक़्त के साथ रद्दी हो चुकी हैं। वो रद्दी ख़्वाहिशें, जिन पर धूल की परतें इस क़दर अपना बसेरा कर चुकी हैं कि जैसे लोन की सारी किश्त ही चुका दी हों।

पर जब मेरी ख्यालों की रेलगाड़ी इस दुनिया में आ के अपने पहियों की रफतार को ज़रा थामती है, तो उस रफतार से धूल को फु करके उड़ा देती है.. और फिर लगाती है इन्हीं ख्वाहिशों पे उम्मीदों के हज़ार झूले।

अब झूलना किसको पसंद नहीं, मुझे तो बहुत ज़्यादा भाता है। 
तो फिर क्या? इस क़दर हवा संग गुफ़्तगू होती है, इस क़दर उन ख़्वाहिशों से फिर रूबरूँ होती हुँ कि जैसे यें किसी नूर सी सजी हों,  कि जैसे मैं अपनी रूह से मिली हुँ। 


- गुन्जन