Monday, January 25, 2010

सूरज की किरण



पंख पसार चुकी है सूरज की किरण,
रोशनी का एक टुकड़ा पहुंचा मेरे कमरे की तरफ,
और सामने की दीवार चमकने लगी छोटे से सूरज की तरह,
मानो स्वागत कर रही सूरज की पहली किरण का . . . 


इतने में ही मेरी आँखें खुली . . 
मैंने देखा उस किरण की तरफ . .
पर फिर आँखें बंद की . .
और चली गई सपनो की तरफ . . 
जिनकी कड़ियाँ थी अभी तक अधूरी . .
ऐसा एक सपना जिसकी कड़ियाँ . .
कबसे नहीं जुड़ पा रही थी . . 


कुछ ही देर बाद,
एक बार फिर से आँख खुली,
वो सूरज की रौशनी . .
मानो . .
कुछ हलचल कर रही थी,
उस शांत से कमरे में,
कुछ गति कुछ जान सी डाल रही थी . .


पर फिर भी दिल बार बार सूरज से यही इल्तेजा कर रहा था . .
कि वो अपनी  किरणो का दामन जल्दी से समेट ले,
और शाम कि चादर से उस रौशनी को ढक दे . . 


शायद मेरा वो सपना मुझे एक बार फिर से दिखे,
और जो कड़ियाँ अभी तक नहीं जुडी हैं,
शायद वो कड़ियाँ इस बार जुड़ जाएँ . .


दिल बार बार सूरज कि किरणों से बोल रहा था
कि वो अभी जाकर सो जाए
और शाम कि धुंध को आने दे . . 


और चाँद से ये गुज़ारिश कि
कि वो अपनी चांदनी भेजे 
कहीं ये कड़ियाँ जुड़ने से पहले टूट न जाएँ. .

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