Monday, April 22, 2019

काश.. के बाद की दुनिया

जब आप अपने ख़यालो की रेलगाड़ी में सफर करते हैं तो आपकी इस यात्रा में एक स्टेशन काश.. के बाद की दुनिया से होकर भी गुज़रता है क्या? मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है जब काश.. के बाद की दुनिया रास्ते में ज़रूर पड़ती है और तब मुलाक़ात होती है कितनी ही ख़्वाहिशों से।

वो ख़्वाहिशें, जो वक़्त के साथ रद्दी हो चुकी हैं। वो रद्दी ख़्वाहिशें, जिन पर धूल की परतें इस क़दर अपना बसेरा कर चुकी हैं कि जैसे लोन की सारी किश्त ही चुका दी हों।

पर जब मेरी ख्यालों की रेलगाड़ी इस दुनिया में आ के अपने पहियों की रफतार को ज़रा थामती है, तो उस रफतार से धूल को फु करके उड़ा देती है.. और फिर लगाती है इन्हीं ख्वाहिशों पे उम्मीदों के हज़ार झूले।

अब झूलना किसको पसंद नहीं, मुझे तो बहुत ज़्यादा भाता है। 
तो फिर क्या? इस क़दर हवा संग गुफ़्तगू होती है, इस क़दर उन ख़्वाहिशों से फिर रूबरूँ होती हुँ कि जैसे यें किसी नूर सी सजी हों,  कि जैसे मैं अपनी रूह से मिली हुँ। 


- गुन्जन 

Sunday, April 7, 2019

वक़्त और मैं..!

आज ज़रा वक़्त से मुलाकात हुई मेरी। सच में बहुत वक़्त लगा इस वक़्त ने मुझसे मिलने में। ऐसा कोई करता है भला? फिर मैंने भी थोड़ा गुस्सा तो दिखाया ही ना, शिकायतों का बक्सा भी मैंने खोला जिसमे कुछ खट्टी मीठी कुछ उलझी कुछ सुलझी बेकरारी हाथ लगी। ऐसे नज़रे चुरा रही थी जैसे कुछ चुरा के भागने ही वाली थी वहां से! खैर! फिर वक़्त ने ज़रा मनाया मुझे तो मैंने भी देर ना लगाई, और तैयार हो गई कुछ नए पुराने लम्हों से सजकर। अरे भाई अब date पे जाना है ना। जैसे ही बैग उठाया तो सौंधी सी खुशबु ने गले लगा लिया.. उफ्फ ये बरसात भी ना बिन बुलाए मेहमान सी है.. पर आज सही मौके पे आई है। अब? ये बरसात ये वक़्त और मैं कुछ लम्हों को चुरा लेंगे फिर। कुछ देर हमने बातें की खूब सारी और फिर आंख लग गई।
कुछ देर बाद आंख खुली हड़बड़ाहट में कि कहीं वक़्त चला तो नहीं गया छोड़कर.. पर वहीं था पास मेरे करवट बदल रहा था.. और बारिश अंगड़ाई ले रही थी अपनी नींद से जददोजहद कर रही थी.. जैसे तैसे उठी और फिर बरसने लगी। मैं kitchen की तरफ गई सोचा चाय बनाऊं। चाय के बर्तनों को ढूंढते हुए मैं अपना सुकून भी ढूंढ रही थी, वक़्त की जैसी ही नींद टूटी उसने सुकून थमाया मुझे और कहा इस बार संभाल कर रखना।
चाय की चुस्की भरते हुए बरसात ने फरमाइश करी कि कुछ ग़ज़ल या गानों का नाश्ता हो जाता तो सुकून उसको भी मिल जाता। तो बस फिर लगाए गए कुछ गानों का ग़ज़लों का मज़ा मैंने भी लिया वक़्त के साथ। 
बरसात गिरती रही और वक़्त खर्च होता गया। शाम यूं बीत गई कि पता ही ना चला कि अंधेरा कबसे दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था। डर तो लगा कि कहीं गुस्से में ना हो पर किसी तरह दरवाज़ा खोला पर ये जनाब तो अपनी मस्ती में हैं और हस के हमारी ग़ज़ल गा रहें हैं।




चलिए अब dinner की तैयारी कर लेती हूं फिर कभी मुलाकात होगी। 😊

- गुंजन

इश्क़..

इश्क़ में वक़्त का हिसाब ना रखा कीजिए बेरखुरदार
आप जितना वक़्त खरीदोगे उतना ही कम पड़ेगा..
इश्क़ वक़्त नहीं बल्कि समुंदर लाता है संग अपने
जिसकी गहराई बस आंखों से ही बयान हो जाती है
और सादगी ऐसी की मुस्कुराहट भी लज्जा जाए..

- गुन्जन

अब भी लिखा करती हो?

कुछ लोग जब कई सालों बाद मिलते हैं
अक्सर पूछा करते हैं
अब भी लिखा करती हो?
मेरा जवाब यूं तो _नहीं_ होता है
फिर वो कारण भी पूछते हैं
मैं _वक़्त_ को दोषी ठहरा देती हूं
फिर कई अलग सवाल
मैं विराम लगा दिया करती हुं..
पर कुछ अनकहा सा रह जाता है
लिखती तो मैं हर रोज़ ही हुं
बस कुछ ही बातें लफ्जो में ढलती हैं
बाकियों का ठिकाना मेरे मन के करीब है।

 - गुन्जन 

इस उलझी सी दुनिया में..


इस उलझी सी दुनिया में 
सुलझा सा सिर्फ एक रिश्ता
क्या मुमकिन है?

क्या चार दिवारी में
इन्ही उलझनों में रहना 
इतना लाज़मी है?

काश तुम समझ पाते
हमारी दुनिया में
उलझनों के लिए जगह नहीं।

काश ये जान पाते
बातों को परेशानियों का मोड़ देना
कितना आसान होता है।

काश मैं समझा पाती
बगैर आइने के भी
ज़िन्दगी खूबसूरत लगती है।।