Monday, April 22, 2019

काश.. के बाद की दुनिया

जब आप अपने ख़यालो की रेलगाड़ी में सफर करते हैं तो आपकी इस यात्रा में एक स्टेशन काश.. के बाद की दुनिया से होकर भी गुज़रता है क्या? मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है जब काश.. के बाद की दुनिया रास्ते में ज़रूर पड़ती है और तब मुलाक़ात होती है कितनी ही ख़्वाहिशों से।

वो ख़्वाहिशें, जो वक़्त के साथ रद्दी हो चुकी हैं। वो रद्दी ख़्वाहिशें, जिन पर धूल की परतें इस क़दर अपना बसेरा कर चुकी हैं कि जैसे लोन की सारी किश्त ही चुका दी हों।

पर जब मेरी ख्यालों की रेलगाड़ी इस दुनिया में आ के अपने पहियों की रफतार को ज़रा थामती है, तो उस रफतार से धूल को फु करके उड़ा देती है.. और फिर लगाती है इन्हीं ख्वाहिशों पे उम्मीदों के हज़ार झूले।

अब झूलना किसको पसंद नहीं, मुझे तो बहुत ज़्यादा भाता है। 
तो फिर क्या? इस क़दर हवा संग गुफ़्तगू होती है, इस क़दर उन ख़्वाहिशों से फिर रूबरूँ होती हुँ कि जैसे यें किसी नूर सी सजी हों,  कि जैसे मैं अपनी रूह से मिली हुँ। 


- गुन्जन 

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