आज ज़रा वक़्त से मुलाकात हुई मेरी। सच में बहुत वक़्त लगा इस वक़्त ने मुझसे मिलने में। ऐसा कोई करता है भला? फिर मैंने भी थोड़ा गुस्सा तो दिखाया ही ना, शिकायतों का बक्सा भी मैंने खोला जिसमे कुछ खट्टी मीठी कुछ उलझी कुछ सुलझी बेकरारी हाथ लगी। ऐसे नज़रे चुरा रही थी जैसे कुछ चुरा के भागने ही वाली थी वहां से! खैर! फिर वक़्त ने ज़रा मनाया मुझे तो मैंने भी देर ना लगाई, और तैयार हो गई कुछ नए पुराने लम्हों से सजकर। अरे भाई अब date पे जाना है ना। जैसे ही बैग उठाया तो सौंधी सी खुशबु ने गले लगा लिया.. उफ्फ ये बरसात भी ना बिन बुलाए मेहमान सी है.. पर आज सही मौके पे आई है। अब? ये बरसात ये वक़्त और मैं कुछ लम्हों को चुरा लेंगे फिर। कुछ देर हमने बातें की खूब सारी और फिर आंख लग गई।
कुछ देर बाद आंख खुली हड़बड़ाहट में कि कहीं वक़्त चला तो नहीं गया छोड़कर.. पर वहीं था पास मेरे करवट बदल रहा था.. और बारिश अंगड़ाई ले रही थी अपनी नींद से जददोजहद कर रही थी.. जैसे तैसे उठी और फिर बरसने लगी। मैं kitchen की तरफ गई सोचा चाय बनाऊं। चाय के बर्तनों को ढूंढते हुए मैं अपना सुकून भी ढूंढ रही थी, वक़्त की जैसी ही नींद टूटी उसने सुकून थमाया मुझे और कहा इस बार संभाल कर रखना।
चाय की चुस्की भरते हुए बरसात ने फरमाइश करी कि कुछ ग़ज़ल या गानों का नाश्ता हो जाता तो सुकून उसको भी मिल जाता। तो बस फिर लगाए गए कुछ गानों का ग़ज़लों का मज़ा मैंने भी लिया वक़्त के साथ।
बरसात गिरती रही और वक़्त खर्च होता गया। शाम यूं बीत गई कि पता ही ना चला कि अंधेरा कबसे दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था। डर तो लगा कि कहीं गुस्से में ना हो पर किसी तरह दरवाज़ा खोला पर ये जनाब तो अपनी मस्ती में हैं और हस के हमारी ग़ज़ल गा रहें हैं।
चलिए अब dinner की तैयारी कर लेती हूं फिर कभी मुलाकात होगी। 😊
- गुंजन
कुछ देर बाद आंख खुली हड़बड़ाहट में कि कहीं वक़्त चला तो नहीं गया छोड़कर.. पर वहीं था पास मेरे करवट बदल रहा था.. और बारिश अंगड़ाई ले रही थी अपनी नींद से जददोजहद कर रही थी.. जैसे तैसे उठी और फिर बरसने लगी। मैं kitchen की तरफ गई सोचा चाय बनाऊं। चाय के बर्तनों को ढूंढते हुए मैं अपना सुकून भी ढूंढ रही थी, वक़्त की जैसी ही नींद टूटी उसने सुकून थमाया मुझे और कहा इस बार संभाल कर रखना।
चाय की चुस्की भरते हुए बरसात ने फरमाइश करी कि कुछ ग़ज़ल या गानों का नाश्ता हो जाता तो सुकून उसको भी मिल जाता। तो बस फिर लगाए गए कुछ गानों का ग़ज़लों का मज़ा मैंने भी लिया वक़्त के साथ।
बरसात गिरती रही और वक़्त खर्च होता गया। शाम यूं बीत गई कि पता ही ना चला कि अंधेरा कबसे दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था। डर तो लगा कि कहीं गुस्से में ना हो पर किसी तरह दरवाज़ा खोला पर ये जनाब तो अपनी मस्ती में हैं और हस के हमारी ग़ज़ल गा रहें हैं।
चलिए अब dinner की तैयारी कर लेती हूं फिर कभी मुलाकात होगी। 😊
- गुंजन
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