Wednesday, July 15, 2015

दर्द ..



इतना दर्द है निकलता तुम्हारी कलम से,
कि पूछुँ तुमसे -  तुम खैरियत से हो न?

रूह में इस क़दर मिल जाते हैं अलफ़ाज़ तुम्हारे,
कि कहुँ तुमसे - खयालों से मुलाकात ज़ारी रखना!

तेरी एक हसी के क़ायल तो हम हैं ही,
कि समझाऊँ तुम्हे- तुम उदास कभी मत होना!

एक और वक़्त है जहाँ तुम आज़ाद परिन्दे सी हो,
कि बताऊँ तुम्हें- वो वक़्त सिर्फ आँखों में ही है मेरी बसा!

इरादा तो तुमसे बस गुफ़्तगू का ही है,
कि एहसास कराऊँ तुम्हें- दिल में तेरे बस मैं हूँ बसता!


                   -गुन्जन



Monday, June 22, 2015

Khushi hun main...




जुदा-जुदा से अंदाज़ में,
हर किसी के एहसास में,
ज़िन्दा हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

लबों पे मुस्कान कभी,
आँखों से बूँदें बनके,
छलकती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

हर दुआ में,
ज़िन्दगी के हर सफर में,
साथ चलती हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

कभी दिल में बसती हुँ,
बनके मुसकान कभी होंठों पे खिलती हुँ,
हर किसी की हसरत हुँ मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!

ना है कहीं आशियाना मेरा,
ना कोई ठिकाना मेरा,
प्यार के एहसास में मिलुंगी मैं,
ख़ुशी हुँ मैं!


                - गुन्जन 


Sunday, June 21, 2015

अभी थोड़ा मरने दो..


ना करो इकरार-इ-इश्क़,
कि अभी थोड़ा मरने दो,
इन लमहों के चादर तले,
इंतज़ार थोड़ा करने दो!


युँ जला के चिराग यहाँ,
ख़ुशियाँ भरके दामन में मेरे,
आरज़ू की आग़ोश में मुझे,
थोड़ा और रहने दो!


              -गुन्जन 



Friday, June 19, 2015

Random..


बड़ी मुद्दत बाद ये ख़्वाहिश जगी है, 
कि दिल में तेरे बस पनाह मिल जाए, 
यूँ तो तरसे हज़ारों आशिक़, 
मुझे बस तेरी एक नज़र मिल जाए!
 

=====
 
खुशनसीब होते हैं वो, 
जिन्हें इश्क़ होता है, 
वरना ज़िन्दगी में हर क़दम पे, 
हमने तो देखा बस धोखा है,
 

=====
 
बे-वजह हमे यूँ ना हसाओ,
कहदो कि इश्क़ है तुम्हे, 
यूँ छुप-छुप के मिलने से, 
हमने तुम्हे कब रोका है?
 


=====
                                   -गुन्जन

Thursday, June 18, 2015

शब्दों की एक डोर...



शब्दों की एक डोर,
जिसका न है कोई छोर,
हम सब इसको थामे हैं,
बाकी दुनिया से हम अनजाने हैं!!

ढील कोई दे ज़रा सी,
तो कई रंग मिल जाने हैं,
जिसको छूले उसकी हो जाए,
कुछ ऐसे इसके मायने हैं!!

प्यार इश्क़ और मोहब्बत,
साथी इसके पुराने हैं,
बस लफ़्ज़ों का खेल है यारों,
अंदाज़ इसके तराने हैं!!

बे-फ़िक़री का आलम देखो,
की वो भी इसके दिवाने हैं,
कितना दूर जायोगे इससे,
हर जगह इसके ठिकाने हैं!!

आसमान में उड़ते देखो,
कितने लफ्ज़ हमारे हैं,
जुगल-बंदी सी करते वो,
कैसे हमे पहचाने हैं!!

                 
            - गुन्जन 


Friday, June 5, 2015

खुशियों का बिछौना ...



चल! खुशियों का बिछौना बिछाए,
दो बातों के तकिये लगाए,
आसमान की चादर ओढ़े,
चाँद तारों से गप्पे लड़ायें!

चार coffee के कप लगाएं,
उनमें चम्मच ग़ज़ल की घुमाएं,
घूँट-घूँट हर किस्सा सुनाएँ,
चल, खुशियों का बिछौना बिछायें!

हसी-ठिठोली की maje पर,
चलो कुछ यादें सजाये,
मुस्कुराहटों का छाता लेकर,
चलो हम सब भीग जाएँ!

कैद कर कुछ पल मुट्ठी में,
लम्हों को आईना दिखलायें,
दीवारे पे पड़ी bulb की रौशनी में,
चल कुछ और पल बनायें!

पंखे की रफ़्तार को थामे,
अब एक नई नज़्म बनाये,
दो बातों के तकिये लगाएं,
चल, खुशियों का बिछौना बिछाएं!


- गुन्जन 


!!.. ज़िन्दगी ..!!



ज़िन्दगी की बियाबां में मैं घूमता रहा,
कभी धूप तो कभी छाँव मैं ढूंढ़ता रहा!

बारिशों की छींटों को समुन्दर समझकर,
यूँ ही खा-म-खा क़िस्मत से अपनी लड़ता रहा!

दरख़्तों से कुछ लम्हे तोड़ता रहा,
कभी वो थे अश्क़ और कभी मुस्कुराहटें,
उनमें ही अपने अक्स को टटोलता रहा!

तेरे ग़म को अपना समझ रोता रहा,
तेरी ख़ुशी के हज़ार किस्से खोजता रहा!

मेरे हर लम्हे में उसका ज़िक्र होता रहा,
उसका हर पल मुझसे जुड़ता रहा!


मगर आरजु मुझे जिस लम्हे की थी,
वो मासूमियत से मुझे गलता रहा!

सवालों का सिलसिला बढ़ता रहा,
की जवाब में खुद मैं घिसता रहा!

नादानियों में मैं खुद डूबा रहा,
मनमर्ज़ियों से रुख वो मोड़ती रही!

तेरे वादों की हकीक़त से बेखबर मैं नासमझ,
तुझको खुदा सरीखा मैं तोलता रहा!

अब ताह-ए-ख़ाक में ही सुकून मिलेगा,
ज़िन्दगी मुझे यूँ ही छलती रही!

तेरी गलियों में कुछ इस कदर सुकून मिला,
की हर मोड़ पे खुद-ब-खुद मैं मुड़ता रहा!

जब पूछा तेरे घर का रास्ता,
हर मोड़ पे तेरा एक आशिक़ खड़ा मिला!


Courtesy - श्वेतिमा, ज्योत्सना, हुमा, गुन्जन

Tuesday, June 2, 2015

चोरी हो गई !!



न जाने कहाँ है ,
कल रात, बालकनी में बैठे हुए,
चाँद को तकते-तकते,
बस यूँ ही रखदी थी,
हाँ!!  याद आया,
चाँद की नज़रें थी उस पर,
पर, मैंने तो वहीं रखदी थी,
एक किताब तले !!

नींद का झोंका सा आया था,
और मैं सोने चली गई,
सुबह आकर देखा तो है ही नहीं,
हर पन्ने पर नज़र घुमाई,
पूरी बालकनी छान मारी,
पर नज़र नहीं आई वो मुझे!!

आज अचानक आँख खुली,
तो देखा!! कोई गा रहा है,
मीठा-मीठा सा दर्द अपना कोई सुना रहा है,
बाहर निकली तो मैंने देखा,
ये जनाब तो कल नज़रे टिकाये बैठे थे उसपे,
मैंने फिर अपनी बालकनी में छानबीन करते देखा था इनको,
और अब देखो ! पूरे शहर को अपनी कहके 
ग़ज़ल मेरी सुना रहे हैं!!


- गुंजन