शब्दों की एक डोर,
जिसका न है कोई छोर,
हम सब इसको थामे हैं,
बाकी दुनिया से हम अनजाने हैं!!
ढील कोई दे ज़रा सी,
तो कई रंग मिल जाने हैं,
जिसको छूले उसकी हो जाए,
कुछ ऐसे इसके मायने हैं!!
प्यार इश्क़ और मोहब्बत,
साथी इसके पुराने हैं,
बस लफ़्ज़ों का खेल है यारों,
अंदाज़ इसके तराने हैं!!
बे-फ़िक़री का आलम देखो,
की वो भी इसके दिवाने हैं,
कितना दूर जायोगे इससे,
हर जगह इसके ठिकाने हैं!!
आसमान में उड़ते देखो,
कितने लफ्ज़ हमारे हैं,
जुगल-बंदी सी करते वो,
कैसे हमे पहचाने हैं!!
- गुन्जन
Gud yaar...nice blog
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